हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इनमें सोम प्रदोष व्रत को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और फलदायी माना गया है. जब प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ता है तो उसे सोम प्रदोष कहते हैं. 3 नवंबर 2025, सोमवार को कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी तिथि है, यानी कि सोम प्रदोष व्रत है. आज 3 नवंबर को सोम प्रदोष पर पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम को 05:34 से लेकर 08:11 बजे तक है. सूर्यास्त के बाद महादेव की उपासना का विधान है. इस दौरान शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से भाग्य अच्छा होता है, साथ ही तमाम तरह की बीमारियां भी दूर होती हैं. प्रदोष व्रत की पूजा शाम को प्रदोष काल में करना ही सबसे उचित मानी जाती है.
शुभ मुहूर्त: प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त शाम 5:34 बजे से प्रारंभ होकर रात 8:11 बजे तक बना रहेगा. अमृत चौघड़िया शाम में 4 बजकर 12 मिनट से 5 बजकर 34 तक रहेगा. चल चौघड़िया शाम में 5:34 बजे से 7:12 बजे तक रहने वाला है. गोधूलि मुहूर्त 5:34 बजे से शुरू होकर 6 बजे खत्म होगा.
कैलास पर्वत पर नृत्य करते हैं महादेव: मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलास पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं. इस समय में पूजा करने से जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. वहीं सोम प्रदोष के दिन प्रदोष काल में पूजा करने से शिव जी साधक के सारे पाप नष्ट कर देते हैं और उसे मरने के बाद उच्च स्थान प्राप्त होता है.

पूजा विधि: सबसे पहले चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं. उस पर भगवान शिव और शिव परिवार की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. शिवलिंग पर जल, शहद और दूध से अभिषेक करें. फिर महादेव को चंदन लगाएं और पूरे शिव परिवार को फूलों की माला पहनाएं. इसके बाद माता पार्वती को सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें. भगवान शिव को बेलपत्र और शमी के फूल अर्पित करें. शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं और मिठाई का भोग लगाकर सुख-समृद्धि की कामना करें. अंत में महादेव की आरती करें और अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य अनुसार दान करें.
पूजा सामग्री: आज पूजन में घी, पान, लौंग, रोली, फूल, कच्चा दूध, कपूर, जनेऊ, सुपारी, कलावा, धूपबत्ती, पंचामृत, कुमकुम, गंगाजल, घी का दीपक, दही, अक्षत, बेलपत्र , धतूरा, भांग, शहद, गंगाजल, सफेद चंदन, काले तिल, हरी मूंग दाल, जरूर शामिल करें.
महामृत्युंजय मंत्र
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
सुख और शांति प्राप्त करने का मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!
पौराणिक कथा: सोम प्रदोष व्रत कथा के अनुसार, ”एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी. एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला. ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई. वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था.
शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए इधर-उधर भटक रहा था. राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा. तभी एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार भा गया. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. उन्होंने वैसा ही किया.
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी. उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं. अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए.”

















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