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प्रयागराज में लेटे हुए हनुमान जी से अकबर ने भी मानी थी हार, आज PM मोदी आ रहे माथा टेकने

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पीएम मोदी आज यूपी के प्रयागराज दौरे पर जा रहे हैं. वहां पर वे महाकुंभ 2025 से जुड़ी करीब 7 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उदघाटन करेंगे. इसके साथ ही वे लेटे हुए हनुमान मंदिर, अक्षय वट मंदिर समेत कई प्रमुख तीर्थ स्थलों के दर्शन और साधु-संतों से मुलाकात भी करेंगे. जिस लेटे हुए हनुमान मंदिर के आज पीएम मोदी दर्शन करने जा रहे हैं, उनकी महिमा निराली है. देश में केवल प्रयागराज ही वह जगह है, जहां पर बजरंग बली लेटे हुए या विश्राम की अवस्था में दिखाई देते हैं. कहते हैं कि इस मंदिर से मुगलों का भी इतिहास जुड़ा है और अकबर को यहां पर हार माननी पड़ी थी. 

मुगल शासक अकबर के कहने पर उसके सैनिकों ने इस प्रतिमा को जमीन से निकालने की कोशिश की. लेकिन भरपूर कोशिशों के बावजूद वे प्रतिमा को हिला तक न सके. कहते हैं कि वे प्रतिमा को जितना उठाने की कोशिश कर रही थे. हनुमान जी का वजन उतना ही बढ़ता जा रहा था और वे धरती में गहरे तक समाते जा रहे थे. जब सैनिकों ने यह सूचना अकबर को दी तो वह समझ गया कि कोई अदश्य शक्ति है, जो नहीं चाहती कि उस प्रतिमा को वहां से हटाया जाए. इसके बाद अकबर ने भी हार मान ली. तब संगम तट पर गंगा किनारे लेटे हुए हनुमान जी लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं को अपने दर्शन देते हुए आ रहे हैं. 

प्रयागराज में गंगा किनारे बना लेटे हनुमानजी का मंदिर

सबसे पहले इस मंदिर की विशेषताओं के बारे में बताते हैं. प्रयागराज में यह मंदिर अकबर के किले के पास गंगा किनारे पर है. यहां पर हनुमानजी की 20 फीट लंबी दक्षिणाभिमुखी प्रतिमा मौजूद है. यह प्रतिमा जमीन से करीब 7 फीट नीचे है. उनके बायें हाथ में गदा और दायें हाथ में राम-लक्षमण मौजूद हैं. कहते हैं कि हनुमान जी के बायें पैर के नीचे अहिरावण और दाहिने पैर के नीचे कामदा देवी दबी हैं. 

मां जानकी के कहने पर किया था विश्राम!

संगम नगरी में लेटे हुए हनुमान मंदिर को किले वाले हनुमानजी, बड़े हनुमान जी, बांध वाले हनुमान जी और लेटे हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर करीब 600 वर्ष पुराना माना जाता है. मान्यता है कि लंका पर जीत हासिल करने के बाद जब हनुमान जी लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें बहुत थकान होने लगी. उन्हें थका हुए देखकर माता सीता ने उन्हें उन्हें कुछ देर विश्राम करने के लिए कहा. मां जानकी के कहने पर हनुमान जी संगम के तट पर गंगा किनारे लेट गए. कालांतर में उसी जगह पर हनुमान जी का मंदिर हुआ. 

मंदिर के लिए विंध्याचल पर्वत से मंगवाया विग्रह

एक अन्य मान्यता के अनुसार, कहते हैं कि कन्नौज के राजा के कोई संतान नहीं थी. अपना कोई उत्तराधिकारी न देख वे परेशान रहने लगे. उन्होंने एक दिन अपने राज गुरू से इसका उपाय पूछा. गुरू ने बताया कि हनुमान जी का ऐसा मंदिर बनवाइए, जिसमें वे विश्राम अवस्था में हों और उनके कंधे पर राम-लक्षमण मौजूद हों. उनका यह विग्रह विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाया जाना चाहिए. गुरू की सलाह मानकर राजा ने विंध्याचल से विग्रह मंगवाकर हनुमान जी की प्रतिमा बनवाई और नाव में रखकर संगम किनारे की ओर चलने लगे.

हर साल गंगा मैया करवाती है बजरंग को स्नान

कहते हैं कि जब उनकी प्रतिमा वाली नाव संगम में गंगा नदी के बीच में थी तो वह डूब गई. इस घटना से राजा बहुत दुखी हुए और वे दूसरी नाव से वापस अपने राज्य चले गए. इस घटना के वर्षों बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो वहां धूनी रमाने का प्रयास कर रहे राम भक्त बाबा बालगिरी महाराज को वह प्रतिमा दिखाई दी. उन्होंने अपने शिष्यों के साथ मिलकर इस अनोखी और विशालकाय प्रतिमा को बाहर निकाला और उनका गंगा किनारे मंदिर स्थापित करवाया. 

मान्यता है कि मंदिर बनने के बाद गंगा मइया हर साल हनुमान जी को नहलाने पहुंचती. बरसात के दिनों में जब गंगा का जलस्तर बढ़ता तो उससे पूरा मंदिर डूब जाता. इस अनोखी प्रतिमा और उनके गंगा स्नान की घटना तेजी से चारों ओर फैलने लगी. इसके साथ ही वहां पर हर साल मेला लगने लगा, जिसे माघ मेला के नाम से जाना जाने लगा. हिंदुओं में लेटे हुए हनुमान का यह मंदिर प्रसिद्ध होने से मुगलों को जलन होने लगी.

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